रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका IS के खिलाफ कार्यवाही तो करेगा लेकिन इस मामले में उसके पास भी सीमित विकल्प है। अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान भेजे जाने के आसार नहीं है। रक्षा विशेषज्ञ lieutenant general राजेंद्र सिंह ने कहा कि अमेरिका ने जिस प्रकार से अफगानिस्तान से अपनी फौजे हटाई, उससे इस प्रकार की घटनाएं होने का खतरा महसूस किया जा रहा था।
दरअसल अफगानिस्तान आतंकी संगठनों का गढ़ बना हुआ है। आधे इराक पर काबिज होने वाला IS भी यहाँ सक्रिय है। भले ही वह अब सीमित हो चुके हो। उसने अफगानिस्तान में आत्मघाती हमले को अंजाम देकर अमेरिका और तालिबान दोनों को चुनौती दी है।
अमेरिकी फ़ौज को भी इस मामले का निशाना बनाया गया था। संभवत इसके जरिये यह सन्देश देने की कोशिश की है कि वह ताकतवर हो रहा है। दूसरे तालिबान भी IS की मदद लेता रहा है इसलिए इस मामले के पीछे वह तालिबान को भी ख़बरदार कर रहा है।
रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, अमेरिका ने अफगानिस्तान से फौजे हटाने की प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से पूरा करना चाहिए था। Airforce को तुरंत हटाने की जरुरत नहीं थी। साथ ही उसे Drone और लड़ाकू विमानों के जरिये अफगानिस्तान की सुरक्षा की कार्य योजना भी पेश करना चाहिए था।
इससे तालिबान या IS के हौंसले नहीं बढ़ते। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। इस प्रकार अपनी सेनाएं हटाई जैसे तालिबान से बचकर भागना चाह रहा हो। अब अफगानिस्तान के हालत नाजुक मोड़ पर है। आगे देखना यह होगा कि तालिबान बदला हुआ दीखता है या नही, और लोगों में उसके प्रति विश्वास पैदा होता है या नहीं।
यदि तालिबान की भी अपनी हरकते जारी रही और वहाँ आतंकी समूह भी सक्रीय होते रहे तो फिर देश गृह युद्ध की ओर जा सकता है। लेकिन तालिबान के सहयोग से अमेरिका सख्ती से आतंकी गुटों से निपटता है और तालिबान होने चेहरा बदलता है तो फिर स्थिति में सुधार किया जा सकता है।