किसी से समझौता (Conciliation) करने पर लाभ और हानि | समझौता करना सही या गलत - True Gyan

किसी से समझौता (Conciliation) करने पर लाभ और हानि | समझौता करना सही या गलत

हम अपने आस - पास के ऐसे लोगों को दयावान समझते है जिन्होंने कदम - कदम पर समझौते किये हो। हमे लगता है कि हर परिस्थिति और लोगो के साथ समझौता करने वाले कमजोर होते है। मगर सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। आईये नजर दौड़ते है। 


लगातार समझौते करते रहना और अपने आप को कमजोर मानना भी एक किस्म की बीमारी है, इसकी वजह से मरीज अवसाद (Depression), तनाव, कुंठा, दिल की बीमारी से परेशान रह सकता है। अमेरिका के प्रसिद्ध साइकोथेरेपिस्ट डॉक्टर वूलन पार्च ने लिखा था। 


उन्होंने California University में हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के हवाले से लिखा था कि Covid काल में समझौता करने वाले मरीजों की संख्या में लगभग 28 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा, हमारे देश में समझौतों को लेकर अलग नजरिया है। 


हमें बचपन से सिखाया जाता है कि समझौता करना जिंदगी का एक हिस्सा है। संयुक्त परिवार में रहने वाले, घर के बड़ो की इच्छा के आगे समर्पण कर देते है। लेकिन हाँ कई बार गलत बातों के लिए समझौता करने पर आदमी अंदर से बीमार पड़ने लगता है। 


उन्होंने कहा पर मेरी नजर में दूसरों का पक्ष जानना, उन्हें सुनना, दूसरों की सहमति से काम करना फायदा भी पंहुचा सकता है। बड़े बुजुर्ग कहते है कि अगर आज तुम दूसरों की पसंद के हिसाब से काम कर लो, कल नया दिन होगा तब अपनी पसंद से कर लेना। 


कुछ बातें जो हमे गलत लगती थी, अपने बड़ों से कह देते थे और वे भी हमारी बात को समझ लेते थे। इस तरह बचपन से मेरे प्रशिक्षण में यह बात खुल कर सामने आयी कि समझौता करना गलत नहीं है। अपनी राय रखना भी गलत नहीं है। 


बिलकुल इससे मिलती जुलती बात कही है समाजशास्त्री मॉरित्युगु जॉन एन ने कीकोलोजी ऑफ़ एडजस्टमेंट द सर्च फॉर मीनिंगफुल बैलेंस नामक अपनी किताब में। वह कहते है जिस समझौते को करते समय आप तनाव में आ जाते है, आपको असहजता महसूस हो, वहां रुक कर सोचें। 


अपने विवेक से काम ले कि जो आप दूसरों के लिए या किसी खास परिस्थिति के लिए कर रहे है, उसका क्या नतीजा निकलेगा। अगर आप इसका अनुमान लगा पा रहे है, तो फिर वही करे, जो आपको करना चाहिए या करने का मन हो। 


हमारे घर परिवार ऐसे कई लोग होते है, जो हर बात में खुद को लचीला छोड़ देते है। खासकर हमारी माताएं। खाने को लेकर, खरीदारी को लेकर, दूसरों के लिए दिनभर खटने से लेकर बीमार पड़ने तक, समझौते करती चली जाती है। कई बार तो सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि वो उनकी ख़ुशी के लिए ऐसा कर रही है। 


समझौता करने या दूसरों की इच्छा के आगे समर्पण करने वाले हमेशा बेचारे नहीं होते। आपके ख़ुशी, दुःख और पीड़ा आपके अंदर ही पैदा होते है कम से कम ये सब चीजे आपके अनुसार पैदा होनी चाहिए। खासकर भारत में लड़कियों को सिखाया जाता है कि उन्हें हर हाल में समझौता करना होगा। 


पर डॉक्टर उमा रवि कहती है  कि यह समझौता नहीं है, हारना है। आप बाजी खेलने से पहले अपनी बेटियों को हरने की सीख दे रहे है। उन्हें सही गलत में फर्क करना सिखाईये,उन्हें लचीला (दयालु) बनाना सिखाईये, पर झुकना नहीं। यह सीख लड़का और लड़की दोनों में बराबरी का होना चिहिए। 


मगर समझौता करने का मतलब हमेशा झुकना या हारना नहीं होता। यह समझौता करना यह बताता है कि आपमें कितना ग्रहण करने की क्षमता है और दूसरों का नजरिया समझने में आसानी हो जाती है। मगर जबरन समझौता करना मतलब डिप्रेशन में रहे है।